जसुली दीदी-उत्तराखंड की सबसे बड़ी दानवीर महिला : जो हेनरी रैमजे को नदी में रुपए बहाती मिली थीं
डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल (Jasuli-Uttarakhands biggest philanthropist woman)। स्व. जसुली दताल जिनकी पहचान जसुली शौक्याणी, जसुली दीदी व जसुली बुड़ी के नाम से और कुमाऊं-उत्तराखंड की सबसे बड़ी महान दानवीर महिला के नाम से विख्यात हैं, आज उनकी कहानी जानिए। उनका जन्म दांतू गाँव, तहसील धारचूला, परगना दारमा, जिला पिथौरागढ में हुआ था। धनी माता-पिता की इकलौती संतान जसुली कम उम्र में ही विधवा हो गयी थी और उनके एक मात्र पुत्र की भी असमय मृत्यु हो गयी थी।
कहते हैं कि सन्तानहीन व विधवा जसुली दीदी ब्रिटिश शासन काल में कुमाऊँ वासियों के पसंदीदा कमिश्नर रहे हेनरी रैमजे को दुग्तु से दांतू गांव जाने के दौरान न्यूलामती नदी के किनारे चांदी के सिक्कों को धन के प्रति निर्लिप्त भाव से एक-एक कर नदी में बहाते हुए मिलीं। यह देखकर रैमजे स्तब्ध रह गए।
दांतू पहुंच कर रैमजे ने गांव वालों से इस सम्बंध में पूछा तो पता चला कि जसुली दीदी हर सप्ताह मन भर रुपयों के सिक्के न्यूलामती नदी को दान कर देती हैं। रैमजे ने जसुली को समझाया कि इस धन का उपयोग जनहित में किया जाये तो पुण्य लाभ होगा। जसुली ने कमिश्नर की बात मान ली। जसुली का असीम धन घोडों और भेड़-बकरियों में लाद कर अल्मोड़ा पहुंचाया गया।
इसी धन से कमिश्नर रैमजे ने जसुली शौक्याण के नाम से 300 से अधिक धर्मशालाएं बनवाई। इन्हें बनवाने में लगभग 20 वर्ष लगे। उस दौर में यह धर्मशालायें नेपाल-तिब्बत के व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के रात्रि विश्राम का सहारा बनती थीं। इनमें पीने के पानी व अन्य चीजों की अच्छी व्यवस्था भी होती थी। 1970 तक सभी दूर-दराज क्षेत्रों के सड़क से जुड़ जाने से इन धर्मशालाओं का उपयोग बंद हो गया। धीरे-धीरे इन धर्मशालाएं वक्त के साथ-साथ जीर्ण होती चली गयी। कुछ सड़कों के निर्माण मार्ग में आने की वजह से तोड़ दी गयी।
300 के करीब धर्मशालाओं का निर्माण किया था
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद के सीमांत धारचूला के दांतू गांव की निवासी जसुली दीदी ने लगभग 170 साल पहले दारमा घाटी से लेकर पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, धारचूला, टनकपुर, नारायण तेवाड़ी देवाल अल्मोड़ा, वीरभट्टी, सुयालबाड़ी, रामनगर, कालाढूंगी, रांतीघाट व भोटिया पड़ाव हल्द्वानी नैनीताल, पिथौरागढ़, भराड़ी, बागेश्वर, सोमेश्वर, लोहाघाट, टनकपुर, ऐंचोली, थल, अस्कोट, बलुवाकोट, धारचूला, कनालीछीना, तवाघाट, खेला, पांगू व बागेश्वर सहित कुमाऊं मंडल के पैदल रास्तों पर स्थित अनेक स्थानों पर 300 के करीब धर्मशालाओं का निर्माण किया था।
इनमें से ज्यादातर धर्मशालाएं अब खंडहर हो चुकी हैं। इन धर्मशालाओं का वर्णन 19वीं सदी के आठवें दशक (1870) में अल्मोड़ा के तत्कालीन कमिश्नर शेरिंग के यात्रा वृतांत में भी मिलता है।
कुमाऊं की दानवीर जसुली दीदी की 170 वर्ष पुरानी विरासत का हुआ संरक्षण… (Jasuli-Uttarakhands biggest philanthropist woman)
जसुली शौक्याणी, जसुली दीदी व जसुली बुड़ी के नाम से विख्यात कुमाऊं की महान दानवीर महिला स्व. जसुली दताल की जनपद के सुयालबाड़ी में स्थित ऐतिहासिक धरोहर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। जनपद की जीवनदायिनी कोसी नदी के पास स्थित इस धर्मशाला के साथ ही यहां नदी में विभिन्न गतिविधियां के संचालन के साथ ही पार्क का 34 लाख की लागत से निर्माण कार्य किया गया है।
बताया गया है कि राज्य सरकार ने गत वर्ष जसुली दीदी द्वारा निर्मित सभी धर्मशालाओं के जीर्णोद्धार का प्रस्ताव तैयार करवाया था। इसके तहत अब सुयालबाड़ी सहित कुछ अनय धर्मशालाओं का जीर्णोद्धार कार्य शुरू हो गया है। (Jasuli-Uttarakhands biggest philanthropist woman)
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