चैत्र की जगह 4 माह पूर्व पौष माह में ही पकने लगा ‘काफल’, जलवायु परिवर्तन ने बदला प्रकृति का चक्र ?

नवीन समाचार, चम्पावत, 20 दिसंबर 2025 (Know About Kafal-Myrica Esculata)। जनपद चम्पावत के पर्वतीय क्षेत्रों में वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब केवल तापमान और मौसम तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसका सीधा असर जंगलों, खेती-किसानी और पारंपरिक फलों के प्राकृतिक जीवन चक्र पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है ?
सुप्रसिद्ध कुमाउनी गीत ‘काफल पाको चैता’ में उल्लेखित आमतौर पर चैत्र से वैशाख यानी अप्रैल-मई में फलने वाला सुप्रसिद्ध पहाड़ी फल काफल इस बार बाराकोट विकासखंड के जंगलों में पौष माह में ही फलने और पकने लगा है। यह असामान्य स्थिति न केवल स्थानीय नागरिकों के लिए कौतूहल का विषय बनी हुई है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी गंभीर चेतावनी मानी जा रही है कि प्रकृति का संतुलन तेजी से बदल रहा है।
🌱 समय से पहले काफल, बदलते मौसम का संकेत
बाराकोट क्षेत्र में दिखा असामान्य प्राकृतिक दृश्य
बाराकोट तहसील क्षेत्र के समीप जंगलों में काफल के पेड़ों पर पौष माह में ही फल दिखाई देना और कुछ फलों का पक जाना स्थानीय लोगों के लिए चौंकाने वाला दृश्य है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार सर्दियों के मौसम में काफल को इस अवस्था में देखा है। सामान्यतः यह फल वसंत और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में ही दिखाई देता है, लेकिन इस वर्ष मौसम चक्र पूरी तरह बदला हुआ प्रतीत हो रहा है।
🌦️ शीतकालीन वर्षा व हिमपात की कमी
पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ रहा असर
विशेषज्ञों के अनुसार इस वर्ष शीतकालीन वर्षा और हिमपात लगभग न के बराबर हुआ है। न तो पर्याप्त वर्षा हुई और न ही पहाड़ों में बर्फवारी देखने को मिली। इसके कारण तापमान सामान्य से अधिक बना रहा, जिससे पेड़ों में समय से पहले फूल और फल आने लगे। यही कारण है कि काफल जैसे पारंपरिक पहाड़ी फल अपने निर्धारित समय से लगभग चार माह पहले फलने लगे हैं।
🌳 जंगलों की सेहत पर भी खतरा
वनाग्नि और बदलता तापमान
स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले वर्षों में वनाग्नि की घटनाओं के कारण भी काफल के कई पेड़ प्रभावित हुए हैं। तापमान में वृद्धि और नमी की कमी से जंगलों की जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले वर्षों में काफल सहित अन्य प्राकृतिक फलों का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
🍒 स्वाद और ताजगी पर पड़ सकता है असर
जल्दी पकने से घटती गुणवत्ता
जानकारों का मानना है कि काफल का समय से पहले आना इसके स्वाद और ताजगी पर भी असर डाल सकता है। काफल का फल पेड़ से तोड़ने के कुछ ही घंटों में अपना स्वाद बदल लेता है। ऐसे में यदि यह सर्दियों में ही पकने लगेगा तो इसकी प्राकृतिक मिठास और औषधीय गुणों में भी कमी आने की आशंका है।
🎵 संस्कृति से जुड़ा है काफल
लोकगीतों और परंपराओं में विशेष स्थान
काफल केवल एक फल नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और लोकजीवन का अहम हिस्सा है। कुमाउनी लोकगीत ‘बेड़ू पाको बारामासा, नरैणा काफल पाको चैता’ में काफल का उल्लेख इसकी पारंपरिक ऋतु को दर्शाता है। लेकिन जब काफल चैत की बजाय पौष में ही पकने लगे, तो यह लोकपरंपराओं के साथ-साथ प्रकृति के असंतुलन का भी संकेत देता है।
🌍 जलवायु परिवर्तन की स्पष्ट चेतावनी
वैज्ञानिक भी जता रहे चिंता
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार समय से पहले फलना जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है। सर्दियों में असामान्य गर्मी, वर्षा का अभाव और मौसम का अनिश्चित व्यवहार इसके मुख्य कारण माने जा रहे हैं। यदि समय रहते पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के संतुलन पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में पहाड़ों की पारंपरिक पहचान भी खतरे में पड़ सकती है।
काफल जैसा फल, जिसकी दीवानगी देश-विदेश तक है और जिसकी प्रशंसा स्वयं नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं, यदि अपने प्राकृतिक समय से भटकने लगे तो यह केवल एक फल का मामला नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र के लिए चेतावनी है। चम्पावत के जंगलों में पौष माह में पका काफल प्रकृति के बदलते मिजाज की कहानी खुद बयां कर रहा है। पाठकों से आग्रह है कि इस समाचार से संबंधित अपनी राय और विचार नीचे दिए गए कमेन्ट बॉक्स में अवश्य साझा करें।
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पूर्व समाचार : फलों के राजा से 5 गुना तक महंगा बिक रहा पहाड़ का यह फल-काफल, प्रधानमंत्री मोदी भी कर चुके हैं तारीफ..
डॉ. नवीन जोशी @ हल्द्वानी, 19 मई 2024 (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)। यह पहाड़ के फलों के प्रति लोगों की दीवानगी है कि इन फलों का मांग के अनुरूप उत्पादन कम होना, या कि कहीं इनके विपणन में कोई समस्या कि पहाड़ के फल पहाड़ में नहीं मिल रहे हैं। पहाड़ की मंडी हल्द्वानी में मिल भी रहे हैं तो देश के दूर के हिस्सों से आने वाले फलों के मुकाबले कई-कई गुना तक महंगे। इस कारण पहाड़ के लोग ही पहाड़ के फलों का स्वाद नहीं ले पा रहे हैं।
सबसे पहले बाद पहाड़ के सुप्रसिद्ध फल काफल की, जो प्रसिद्ध कुमाउनी गीत ‘बेडू पाको बारा मासा, नरैणा काफल पाको चैता मेरी छैला…’ के जरिये पहाड़ वासियों की ही नहीं बॉलीवुड की जुबान पर भी चढ़ चुका है। वहीं स्वाद की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके दीवाने हैं। पिछले वर्ष उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को काफल की प्रशंसा में पूरे एक पृष्ठ का पत्र लिखा था।
क्यों महंगा है काफल और अन्य पहाड़ी फल ?
इस काफल ने अपनी 350 से 400 रुपये प्रति किलोग्राम कीमत में फलों के राजा आम सहित अन्य सभी फलों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। बल्कि संभवतया यह हल्द्वानी में उपलब्ध सभी फलों में सबसे महंगा व खासकर आम से तो 5 गुना तक महंगा बिक रहा है। इस कारण शायद यह भी है कि काफल हल्द्वानी मंडी में नहीं आता है। गिने-चुने लोग, खासकर महिलाएं इसे जंगलों से तोड़कर लाते हैं। बताया जा रहा है कि वनाग्नि की वजह से काफल के पेड़ भी जले हैं। इस कारण इस वर्ष इसकी पैदावार भी कम हुई है।
इसलिये यह जहां पिछले वर्षों में 200 रुपये प्रति किलो के भाव तक मिल जाता था, लेकिन इस वर्ष इसके दाम दोगुने तक बढ़ गये हैं और यह फलों के ठेलों की जगह फुटपाथ पर भी इतना महंगा बिक रहा है। यह भी है कि पहाड़ के अन्य फल भी 100 रुपये प्रति किग्रा से अधिक के भाव बिक रहे हैं, जबकि अन्य बाहरी फल 100 से नीचे के भाव उपलब्ध हैं।
हल्द्वानी बाजार में बिक रहे फलों की दरें प्रति किग्रा में
काफल: 350-400
आडू : 80-100
खुबानी: 120-150
पुलम: 100-150
आम: 60-70
सेब: 180-200
तरबूज: 15-20
खरबूजा: 20-30
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यह भी पढ़ें : प्रधानमंत्री मोदी को इतना पसंद आया उत्तराखंड का काफल कि सीएम धामी को पत्र लिखकर दी जानकारी… (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
नवीन समाचार, देहरादून, 5 जुलाई 2023। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जैवविविधता से परिपूर्ण उत्तराखंड के काफलों (Kafal) (वानस्पतिक नाम मैरिका एस्कुलेंटा-Myrica esculenta)का रसीला स्वाद बहुत भाया है। मोदी काफल के स्वाद से इतने प्रभावित हुए हैं कि उन्होंने इसके लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को बकायदा इसके लिए पत्र भेजा है।
पत्र में श्री मोदी ने कहा है, ‘देवभूमि उत्तराखंड से आपके द्वारा भेजे गए रसीले और दिव्य मौसमी फल ‘काफल’ प्राप्त हुए। इस स्नेहपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आपका हृदय से आभार। हमारी प्रकृति ने हमें एक से बढ़कर एक उपहार दिए हैं और उत्तराखंड तो इस मामले में बहुत धनी है, जहां औषधीय गुणों से युक्त कंद-मूल और फल-फूल प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। काफल ऐसा ही एक फल है जिसके औषधीय गुणों का उल्लेख प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है।
फल के साथ ही इन पेड़ की छाल, फूल, बीज का भी उपयोग आयुर्वेद में उपचार के लिए किया जाता है। काफल उत्तराखंड की संस्कृति में भी रचा बसा है। इसका उल्लेख विभिन्न रूपों में यहां के लोकगीतों में भी पाया जाता है।
उत्तराखण्ड जाएं और वहां मिलने वाले विभिन्न प्रकार के पहाड़ी फलों का स्वाद ना लें, तो यात्रा अधूरी लगती है। गर्मियों के मौसम में पक कर तैयार होने वाले काफल राज्य में आने वाले पर्यटकों में भी खासे लोकप्रिय हैं। अपनी बड़ी हुई मांग के कारण मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाला यह फल स्थानीय लोगों को आर्थिक मजबूती भी प्रदान कर रहा है।
मुझे खुशी है कि काफल की बेहतर पैदावार के तरीकों को अपनाकर और इसके लिए उपयुक्त बाजार सुनिश्चित कर गुणों से भरपूर इस फल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बाबा केदार और भगवान बद्री विशाल से उत्तराखंड के लोगों के कल्याण और राज्य की समृद्धि की कामना करता हूँ।’
काफल खाने के लाभ (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
नैनीताल। काफल को अंग्रेजी में बॉक्स मिर्टल, संस्कृत में कट्फल, सोमवल्क, महावल्कल, कैटर्य, कुम्भिका, श्रीपर्णिका, कुमुदिका, भद्रवती, रामपत्रीय तथा हिंदी में कायफर व कायलफ भी कहा जाता है। यह पेट साफ करने के साथ ही कफ और वात को कम करने वाला तथा रुचिकारक होता है। इसके साथ ही यह शुक्राणु के लिए फायदेमंद और दर्दनिवारक भी होता है,
तथा सांस संबंधी समस्याओं, प्रमेह यानी डायबिटीज, अर्श या पाइल्स, कास, खाने में रुचि न होने, गले के रोग, कुष्ठ, कृमि, अपच, मोटापा, मूत्रदोष, तृष्णा, ज्वर, ग्रहणी पाण्डुरोग या एनीमिया, धातुविकार, मुखरोग या मुँह में छाले या सूजन, पीनस, प्रतिश्याय, सूजन तथा जलन में भी फायदेमंद होता है। इसकी तने की त्वचा सुगंधित, उत्तेजक, बलकारक, पूयरोधी, दर्दनिवारक, जीवाणुरोधी एवं विषाणुरोधी भी होती है।
(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें, यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर हमारे टेलीग्राम पेज से जुड़ें और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें।
यह भी पढ़ें : ग्लोबलवार्मिंग का प्रभाव ! तीन माह पूर्व ही “काफल पाको पूसा…!!!” (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
नवीन समाचार, नैनीताल, 9 जनवरी 2019। कुमाऊं के सुप्रसिद्ध लोकगीत ‘बेड़ू पाको बारों मासा, ओ नरैंण काफल पाको चैता’ में वर्णित व चैत यानी चैत्र माह के आखिर में पकना शुरू करने वाला और वास्तव में मई-जून की गर्मियों में शीतलता प्रदान करने वाला काफल (वानस्पतिक नाम मैरिका एस्कुलेंटा-Myrica esculenta) लगातार दूसरेे वर्ष संभवतया अपने इतिहास में पहली बार, कड़ाके की सर्दियों के पौष माह में ही पक गया है। नैनीताल जिले केे भकत्यूूड़ा गांव के एक पेड़ में काफल पक गए हैं उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष भी 8 जनवरी को ही काफल पकनेे की पहली खबर आई थी।
ऐसा शायद इसलिये कि मैदानों में छाए भीषण कोहरे व ठंड से इतर पहाड़ों पर दिन में चटख धूप खिली हुई है, और रात्रि में खुले आसमान से जबरदस्त मात्रा में बर्फ की तरह सूखा पाला टपक रहा है। मुनस्यारी, मुक्तेश्वर व बिन्सर को छोड़कर काफल के मुख्य उत्पादक स्थल कुमाऊं में कहीं भी बर्फवारी दूर, ठीक से शीतकालीन वर्षा भी नहीं हुई है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
इस कारण खेतों में रबी के अंतर्गत गेहूं व अन्य के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाए या अंकुरित होकर सूखने लगे हैं। जिला उद्यान अधिकारी भावना जोशी का कहना है कि वातावरण परिवर्तन के कारण फल आदि अपने समय से पहले आने लगे हैं। वर्तमान में कई फलों के फूल जो कि फरवरी में मार्च में दिखाई देते थे उनके फूल पेड़ों में दिखाई दे रहे हैं। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
वहीं गत वर्ष 8 जनवरी को पर्यावरण प्रेमी चंदन नयाल ने बताया था कि जनपद के धारी ब्लॉक में टांडी पोखराड़ स्थित मझेड़ा वन पंचायत में 10 दिन पहले ही काफल पकने शुरू हो गए थे, और अब ठीक से पक गए हैं। उधर पहाड़पानी में भी काफल पके हुए नजर आ रहे हैं। इसे ‘ग्लोबलवार्मिंग’ का प्रभाव माना जा रहा है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
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भैया, यह का फल है ? जी यह ‘काफल’ (Kafal) ही है (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। दिल्ली की गर्मी से बचकर नैनीताल आऐ सैलानी दिवाकर शर्मा सरोवरनगरी पहुंचे। बस से उतरते ही झील के किनारे बिकते एक नऐ से फल को देख बच्चे उसे लेने की जिद करने लगे। शर्मा जी ने पूछ लिया, भय्या यह का फल है ? टोकरी में फल लेकर बेच रहे विक्रेता प्रकाश ने जवाब दिया `काफल´ है। शर्मा जी की समझ में कुछ न आया, पुन: फल का नाम पूछा लेकिन फिर वही जवाब। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
आखिर शर्मा जी के एक स्थानीय मित्र ने स्थिति स्पष्ट की, भाई साहब, इस फल का नाम ही काफल है। दाम पूछे तो जवाब मिला, 150 रुपऐ किलो। आखिर कागज की शंकु के अकार की पुड़िया दस रुपऐ में ली, लेकिन स्वाद लाजबाब था, सो एक से काम न चला। सब के लिए अलग-अलग ली। अधिक लेने की इच्छा भी जताई, तो दुकानदार बोला, बाबूजी यह पहाड़ का फल है। बस, चखने भर को ही उपलब्ध है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
पहाड़ में `काफल पाको मैंल न चाखो´ व `उतुकै पोथी पुरै पुरै´ जैसी कई कहानियां व प्रशिद्ध कुमाउनी गीत ‘बेडू पाको बारों मासा’ भी (अगली पंक्ति ‘ओ नरैन काफल पाको चैता’) `काफल´ के इर्द गिर्द ही घूमते हैं। कहा जाता है कि आज भी पहाड़ के जंगलों में दो अलग अलग पक्षी गर्मियों के इस मौसम में इस तरह की ध्वनियां निकालते हैं। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
एक कहानी के अनुसार यह पक्षी पूर्व जन्म में मां-बेटी थे, बेटी को मां ने काफलों के पहरे में लगाया था। धूप के कारण काफल सूख कर कम दिखने लगे, जिस पर मां ने बेटी पर काफलों को खाने का आरोप लगाया। चूंकि वह काफल का स्वाद भी नहीं ले पाई थी, इसलिऐ इस दु:ख में उसकी मृत्यु हो गई और वह अगले जन्म में पक्षी बन कर `काफल पाको मैंल न चाखो´ यानी काफल पक गऐ किन्तु मैं नहीं चख पायी की टोर लगाती रहती है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
उधर, शाम को काफल पुन: नम होकर पूर्व की ही मात्रा में दिखने लगे। पुत्री की मौत के लिए स्वयं को दोषी मानते हुऐ मां की भी मृत्यु हो गई और वह अगले जन्म में `उतुकै पोथी पुरै-पुरै´ यानी पुत्री काफल पूरे ही हैं की टोर लगाने वाली चिड़िया बन गई। आज भी पहाड़ी जंगलों में गर्मियों के मौसम में ऐसी टोर लगाने वाले दो पक्षियों की उदास सी आवाजें खूब सुनाई पड़ती हैं। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
गर्मियों में होने वाले इस फल का यह नाम कैसे पड़ा, इसके पीछे भी सैलानी शर्मा जी व दुकानदार प्रकाश के बीच जैसा वार्तालाप ही आधार बताया जाता है। कहा जाता है कि किसी जमाने में एक अंग्रेज द्वारा इसका नाम इसी तरह `का फल है ?’ पूछने पर ही इसका यह नाम पड़ा। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
पकने पर लाल एवं फिर काले से रंग वाली ‘जंगली बेरी’ सरीखे फल की प्रवृत्ति शीतलता प्रदान करने वाली है। कब्ज दूर करने या पेट साफ़ करने में तो यह अचूक माना ही जाता है, इसे हृदय सम्बंधी रोगों में भी लाभदायक बताया जाता है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
बीते वर्षों में काफल ‘काफल पाको चैता’ के अनुसार चैत्र यानी मार्च-अप्रैल की बजाय दो माह पूर्व माघ यानी जनवरी-फरवरी माह में ही बाजार में आकर वनस्पति विज्ञानियों का भी चौंका रहा था, किन्तु इस वर्ष यह ठीक समय पर बाजार में आया था। गत दिनों 200 रुपऐ किग्रा तक बिकने के बाद इन दिनों यह कुछ सस्ता 150 रुपऐ तक में बिक रहा है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
लेकिन बाजार में इसकी आमद बेहद सीमित है, और दाम इससे कम होने के भी कोई संभावनायें नहीं हैं। केवल गिने-चुने कुछ स्थानीय लोग ही इसे बेच रहे हैं। इसलिए यदि आप भी इस रसीले फल का स्वाद लेना चाहें तो आपको जल्द पहाड़ आना होगा। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
यह भी पढ़ें : अब (Kafal) ‘काफल पाको चैता’ नहीं कहना पड़ेगा ‘काफल पाको फागुन’ (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
-करीब डेढ़ माह पहले ही पका काफल, वनस्पति विज्ञानी मौसमी परिवर्तन को कारण बता रहे
नवीन समाचार, नैनीताल, 05 मार्च 2021। कुमाऊं के सुप्रसिद्ध लोकगीत ‘बेड़ू पाको बारों मासा, ओ नरैंण काफल पाको चैता’ में वर्णित चैत यानी चैत्र माह के आखिर में पकना शुरू करने वाला और वास्तव में मई-जून की गर्मियों में शीतलता प्रदान करने वाला काफल (वानस्पतिक नाम मैरिका एस्कुलेंटा-डलतपबं मेबनसमदजं) इस बार फागुन यानी करीब डेढ़ माह पूर्व ही पक गया है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
हालांकि इससे वर्ष 2018 व 2019 में काफल लगातार दो वर्ष संभवतया अपने इतिहास में पहली बार, कड़ाके की सर्दियों के पौष यानी जनवरी माह के शुरू में ही पककर भी चौंका चुका है। इसका कारण वैश्विक चिंता का कारण बने ग्लोबलवार्मिंग के साथ ही स्थानीय तौर पर इस वर्ष शीतकालीन वर्षा का न होना माना जा रहा है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
हमेशा की तरह तल्लीताल में राजेंद्र पाल सिंह ने रातीघाट के जंगलों से लाकर काफल के फलों को बेचना प्रारंभ कर दिया है। अभी इसकी कीमत रिकॉर्ड 500 रुपए प्रति किलो तक बताई जा रही है, जबकि पूर्व के वर्षों में काफल 200-250 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 व 2019 में 8 जनवरी को सबसे पहले काफल पकनेे की पहली खबर आई थी। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
गौरतलब है कि इस वर्ष पहाड़ों पर ठीक से बर्फवारी तो दूर, शीतकालीन वर्षा भी नहीं हुई है। इस कारण खेतों में रबी के अंतर्गत गेहूं व अन्य के बीज अंकुरित ही नहीं हो पाए या अंकुरित होकर सूखने लगे हैं। इस वर्ष राज्य वृक्ष बुरांश भी पिछले वर्षों की तरह जमकर नहीं फूला है। बसंत पंचमी से खिलने वाले प्योंली एवं पद्म प्रजाति के आड़ू, खुमानी, पुलम व आलूबुखारा आदि के पेड़ों में भी फूलों की बहार नजर नहीं आ रही है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
इस बारे में कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा. ललित तिवारी ने कहा कि दीर्घकालीन अध्ययन न होने के कारण इसे ग्लोबलवार्मिंग तो नहीं कह सकते, अलबत्ता, तकनीकी तौर पर मौसमी परिवर्तन के कारण, इस वर्ष शीतकालीन वर्षा व बर्फबारी तथा ओस न पड़ने के कारण समय से पहले ताममान में वृद्धि होने की वजह से फूल व फल अधिक जल्दी खिलने-पकने लगे हैं। बुरांश भी मार्च की जगह फूलदेई से काफी पहले ही खिल गया है। इसी तरह अगेती काफल भी पकने लगा है। (Kafal-5 times Costly than King of Fruits-Mango)
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‘डॉ.नवीन जोशी, वर्ष 2015 से उत्तराखंड सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार, ‘कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीएचडी की डिग्री प्राप्त पहले पत्रकार’ एवं मान्यता प्राप्त राज्य आंदोलनकारी हैं। 15 लाख से अधिक नए उपयोक्ताओं के द्वारा 140 मिलियन यानी 1.40 करोड़ से अधिक बार पढी गई आपकी अपनी पसंदीदा व भरोसेमंद समाचार वेबसाइट ‘नवीन समाचार’ के संपादक हैं, साथ ही राष्ट्रीय सहारा, हिन्दुस्थान समाचार आदि समाचार पत्र एवं समाचार एजेंसियों से भी जुड़े हैं।
नवीन समाचार’ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल से ‘मन कही’ के रूप में जनवरी 2010 से इंटरननेट-वेब मीडिया पर सक्रिय, उत्तराखंड का सबसे पुराना ऑनलाइन पत्रकारिता में सक्रिय समूह है। यह उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त रहा, अलेक्सा रैंकिंग के अनुसार उत्तराखंड के समाचार पोर्टलों में अग्रणी, गूगल सर्च पर उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ, भरोसेमंद समाचार पोर्टल के रूप में अग्रणी, समाचारों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाला ऑनलाइन समाचार पोर्टल भी है।











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