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March 17, 2025

कुरान की आयतों के विपरीत निर्देश नहीं दे सकते… लोग शादी की जगह लिव-इन में ही रहने लगेंगे…अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई व मौलाना मदनी सहित कई ने दी UCC को हाईकोर्ट में चुनौती

Rules for Polygamy Live in Halala Bahu Vivah Iddat in Uttarakhand UCC Uniform Civil Code

नवीन समाचार, नैनीताल, 12 फरवरी 2025 (Uttarakhand UCC Challenged in High Court-Reasons उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में 27 जनवरी 2025 से लागू समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से अनलाइन तरीके से-आभासीय रूप से उपस्थित महाधिवक्ता तुषार मेहता ने इन याचिकाओं को निराधार बताते हुए कहा कि सरकार ने नैतिक मूल्यों के आधार पर यह कानून बनाया है और विधायिका को कानून बनाने का पूरा अधिकार है। उन्होंने तर्क दिया कि लिव-इन संबंधों के पंजीकरण से महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में कमी आएगी। मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी।

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याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई

(Uttarakhand UCC Challenged in High Court-Reasonsबुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ ने बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई डालनवाला देहरादून निवासी अल्मशुद्दीन सिद्दीकी, हरिद्वार निवासी इकरा तथा भीमताल नैनीताल निवासी अधिवक्ता सुरेश नेगी द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की।

सिद्दीकी ने याचिका में कहा है कि राज्य सरकार द्वारा लागू यूसीसी संवैधानिक आर्टिकल 14 व 21 का उल्लंघन करता है। यूसीसी के तहत मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म किया गया है। UCC मुस्लिमों के अधिकारों का हनन करता है। वहीं उ लिव इन रिलेशनशिप को निजता के अधिकार के विरुद्ध बताया है। याचिका में कहा गया है कि UCC अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता तो कैसा समान नागरिक संहिता है।

उत्तराखंड में यूसीसी से बाहर हैं ये लोग

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को हिंदू, मुस्लिम सहित सभी धर्मों पर समान रूप से लागू किया गया है। इसके बाजवूद संविधान के अनुच्छेद-342 में वर्णित अनुसूचित जनजातियों को यूसीसी से बाहर रखा गया है। इसके अलावा ट्रांसजेंडर समुदाय को भी इससे बाहर रखा गया है। याचिककर्ताओं ने समान नागरिक संहिता 2024 के निम्न प्रावधानों को भी चुनौती दी है : 

कुरान की आयतों के विपरीत करने का निर्देश नहीं दे सकते 

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि कुरान और उसकी आयतों में निर्धारित नियम हर मुसलमान के लिए एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है। यूसीसी धार्मिक मामलों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जो कुरान की आयतों के विपरीत है। कुरान की आयतों का पालन करना एक मुसलमान के लिए अनिवार्य अभ्यास है और सिविल कानून बनाकर राज्य किसी मुस्लिम व्यक्ति को ऐसा कुछ भी करने का निर्देश नहीं दे सकता जो कुरान की आयतों के विपरीत हो। उदाहरण के लिए तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए इद्दत की अवधि अनिवार्य है, लेकिन यूसीसी में इसे समाप्त कर मुसलमानों के धार्मिक अभ्यास का उल्लंघन किया गया है।

संविधान के विरुद्ध भी बताया 

यह भी कहा कि यूसीसी भारत के संविधान के अनुच्छेद-25 का उल्लंघन करता है। जिसमें धर्म के पालन और मानने की स्वतंत्रता की गारंटी मिली है। यूसीसी की धारा-390 मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के विवाह, तलाक, विरासत के संबंध में रीति-रिवाजों और प्रथाओं को निरस्त करती है। यूसीसी संविधान के अनुच्छेद-245 का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि यह एक राज्य कानून है, जिसका क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र है।

याचिका में लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण और इसके अभाव में दंडात्मक सजा को भी चुनौती दी है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले निजता के अधिकार का उल्लंघन है। यह भी कहा कि यूसीसी संविधान की प्रस्तावना का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि प्रस्तावना आस्था, अभिव्यक्ति, विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देती है।

पति की मौत के बाद पत्नी 40 दिन करती है प्रार्थना

कुरान के अनुसार पति की मौत के बाद पत्नी उसकी आत्मा का शांति के लिए 40 दिन तक प्रार्थना करती है। यूसीसी उसको प्रतिबंधित करता है। दूसरा शरीयत के अनुसार संगे संबंधियों को छोड़कर इस्लाम में अन्य से निकाह करने का प्रविधान है लेकिन यूसीसी में इसकी अनुमति नहीं है।

शरीयत के अनुसार संपत्ति के मामले में पिता अपनी संपत्ति का सभी बेटों को बांटकर उसका एक हिस्सा अपने पास रखकर जब चाहे दान दे सकता है, यूसीसी उसकी भी अनुमति नही देता। यूसीसी के मुख्य प्रविधान विवाह का अनिवार्य पंजीकरण, पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह प्रतिबंधित, सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार, मुस्लिम समुदाय में हलाला व इद्दत की प्रथा पर रोक, संपत्ति के अधिकार में जायज-नाजायज बच्चों में भेद नहीं आदि में संशोधन किया जाए।

इद्दत और तलाक के नियमों का उल्लंघन

उदाहरण के लिए तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए इद्दत की अवधि अनिवार्य है, लेकिन यूसीसी में इसे समाप्त कर दिया गया है, जिससे मुस्लिमों के धार्मिक विश्वासों का उल्लंघन हुआ है। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि यूसीसी संविधान के अनुच्छेद-245 का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि यह एक राज्य कानून है और इसका क्षेत्रीय अधिकार सीमित है।

जनहित याचिका में मुस्लिम के साथ ही पारसी समुदाय की वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी किए जाने सहित अन्य प्राविधानों को भी चुनौती दी गई है।

लिव-इन रिलेशनशिप का प्रविधान असंवैधानिक, लोग शादी करने की जगह लिव-इन में भी रहने लगेंगे 

याचिका में लिव इन रिलेशनशिप को असंवैधानिक ठहराया है। कहा गया कि यूसीसी लागू होने के बाद लोग शादी न करके लिव-इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करेंगे। क्योंकि जब तक पार्टनर के साथ संबंध अच्छे हों तब तक रहेंगे और नहीं बनने पर छोड़ देंगे। अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव-इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह एक साधारण से प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन के भीतर अपने पार्टनर को छोड़ सकता है।

जबकि विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया अपनानी पड़ती है। दशकों के बाद तलाक होता है वह भी पूरा भरण-पोषण देकर। यह राज्य के नागरिकों को जो अधिकार संविधान द्वारा प्राप्त हैं, राज्य सरकार ने उसमें हस्तक्षेप करके उनका हनन किया है। 

UCC में जहां सामान्य शादी के लिए लड़के की उम्र 21 व लड़की की 18 वर्ष होनी आवश्यक है जबकि लिव इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई है। उनसे होने वाले बच्चे कानूनी बच्चे कहे या वैध माने जाएंगे। इससे तो लिव-इन रिलेशनशिप एक तरह की वैध शादी ही है। केवल कानूनी प्रक्रिया अपनाने में अंतर है।

वर्ष 2010 के बाद की गई शादी का रजिस्ट्रेशन कराना भी आवश्यक है, न करने पर तीन माह की सजा या 10 हजार का जुर्माना देना होगा। यूसीसी करता है इस्लामिक रीति-रिवाजों को प्रतिबंधितयाचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने यूसीसी अधिनियम पास करते वक्त इस्लामिक रीति रिवाजों व कुरान तथा उसके अन्य प्रविधानों की अनदेखी की है।

लिव-इन संबंधों का अनिवार्य पंजीकरण असंवैधानिक

याचिका में लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण और इसके उल्लंघन पर दंडात्मक सजा का भी विरोध किया गया है। यह तर्क दिया गया कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले निजता के अधिकार का हनन करता है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यूसीसी संविधान की प्रस्तावना का भी उल्लंघन करता है, जो आस्था, अभिव्यक्ति, विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देती है।

याचिका में लिव-इन संबंधों को असंवैधानिक ठहराने की मांग की गई है। इसमें कहा गया कि विवाह के लिए पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिला की 18 वर्ष निर्धारित है, लेकिन लिव-इन संबंधों के लिए दोनों की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है। इससे जन्मे बच्चों की कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार ने नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप किया है और यूसीसी के माध्यम से उन्हें सीमित करने का प्रयास किया गया है।

पंजीकरण न करने पर दंड का प्रावधान

यूसीसी लागू होने के बाद लोग विवाह करने के बजाय लिव-इन संबंधों को प्राथमिकता देंगे। जब तक संबंध अच्छे रहेंगे, तब तक साथ रहेंगे, अन्यथा आसानी से अलग हो जाएंगे। वर्ष 2010 के बाद लिव-इन संबंधों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। पंजीकरण न कराने पर तीन माह की सजा या 10,000 रुपये का जुर्माना देने का प्रावधान किया गया है।

यूसीसी के मुख्य प्रावधानों को चुनौती

याचिका में यूसीसी के प्रमुख प्रावधानों में संशोधन की मांग की गई है। इनमें विवाह का अनिवार्य पंजीकरण, पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह प्रतिबंधित करना, सभी धर्मों में तलाक की समान प्रक्रिया लागू करना, मुस्लिम समुदाय में हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक लगाना, संपत्ति के अधिकारों में जायज-नाजायज संतान का भेद समाप्त करना आदि शामिल हैं। इस तरह याचिकाकर्ताओं ने लिव-इन संबंधों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विरुद्ध और असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही यह भी सवाल उठाया है कि अनुसूचित जनजाति समुदाय को यूसीसी के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है।

छह सप्ताह बाद अगली सुनवाई

उत्तराखंड उच्च न्यायालय में राज्य सरकार द्वारा लागू किए गए समान नागरिक संहिता 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई।

इस दौरान न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह बाद की तिथि तय की गई है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी हाईकोर्ट में दायर की याचिका 

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर यह याचिका दाखिल की गई, जिसे सोमवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उल्लेखित किया गया। हाईकोर्ट इस मामले पर इसी सप्ताह सुनवाई कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल इस याचिका की पैरवी करेंगे।

मौलाना मदनी ने क्या कहा?

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद ने देश के संविधान, लोकतंत्र और कानून के राज को बनाए रखने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है, और उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि “हम शरीयत के खिलाफ किसी भी कानून को स्वीकार नहीं करते हैं। मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत और धर्म से कोई समझौता नहीं कर सकता। यह मुसलमानों के अस्तित्व का नहीं, बल्कि उनके धार्मिक अधिकारों का सवाल है।”

यूसीसी पर जमीयत की आपत्ति

मौलाना मदनी ने आरोप लगाया कि समान नागरिक संहिता लाकर सरकार संविधान द्वारा मुस्लिम समुदाय को मिले अधिकारों को समाप्त करना चाहती है। उन्होंने कहा कि “हमारी आस्था के मुताबिक हमारे धार्मिक कानून किसी मनुष्य द्वारा नहीं, बल्कि कुरआन और हदीस से प्रमाणित हैं। यदि कोई धार्मिक पर्सनल लॉ को नहीं मानना चाहता, तो उसके लिए देश में पहले से ही एक वैकल्पिक नागरिक संहिता मौजूद है। ऐसे में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों है?”

UCC धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की एक सोची-समझी साजिश- मदनी

उन्होंने कहा कि “शरीयत बिल 1937 से पहले परंपरागत कानून ही लागू थे। उनकी जगह शरीयत बिल को लागू लागू करने के संबंध में जमीयत उलमा-ए-हिंद ने पुरजोर मांग की जोकि मुसलमानों का सबसे बड़ा एकल प्रतिनिधि संगठन है। जमीयत उलमा-ए-हिंद की ही मांग पर शरीयत बिल 1937 पारित किया गया। 

अदालत में अगली सुनवाई जल्द

इस महत्वपूर्ण याचिका पर हाईकोर्ट जल्द सुनवाई करेगा। जमीयत की ओर से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि यूसीसी मुस्लिम समुदाय के विवाह, तलाक, विरासत और धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन करता है। वहीं, सरकार का पक्ष है कि यह कानून सभी नागरिकों के लिए समानता सुनिश्चित करने और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है।

यूसीसी के तहत गोपनीयता को लेकर विशेष प्रावधान

उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत नागरिकों की निजी जानकारी की गोपनीयता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। किसी भी तीसरे व्यक्ति को यूसीसी के अंतर्गत किए गए पंजीकरण से जुड़ी व्यक्तिगत जानकारी नहीं मिलेगी। केवल पंजीकरण की कुल संख्या ही सार्वजनिक की जाएगी, लेकिन उसमें नाम, पता, मोबाइल नंबर, आधार नंबर, धर्म, जाति जैसी कोई भी संवेदनशील जानकारी शामिल नहीं होगी।

अपर सचिव गृह निवेदिता कुकरेती ने स्पष्ट किया कि यूसीसी में नागरिकों की निजी सूचनाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत—

  • कोई बाहरी व्यक्ति किसी भी पंजीकृत सेवा की व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त नहीं कर सकेगा।
  • सिर्फ वही व्यक्ति जिसने आवेदन किया है, वह अपने आवेदन से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  • पंजीकरण की जानकारी केवल रिकॉर्ड के लिए संबंधित थाने को भेजी जाएगी, लेकिन इसका विवरण केवल वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की निगरानी में ही थाना प्रभारी देख सकेगा।

निजी जानकारी के दुरुपयोग पर होगी कड़ी कार्रवाई (Uttarakhand UCC Challenged in High Court-Reasons

यूसीसी के तहत निजी जानकारियों की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए कड़े सुरक्षा उपाय किए गए हैं। यदि किसी भी स्तर पर इन सूचनाओं का दुरुपयोग होता है या किसी की निजी जानकारी को अवैध रूप से सार्वजनिक किया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। (Uttarakhand UCC Challenged in High Court-Reasons, Uttarakhand News, Nainital High Court News, UCC, Provisions in UCC)

अपर सचिव गृह निवेदिता कुकरेती ने कहा, “हमने नागरिकों की निजी जानकारी को सुरक्षित रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए हैं। किसी भी परिस्थिति में किसी तीसरे पक्ष को जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। यदि कोई व्यक्ति सूचना के दुरुपयोग में संलिप्त पाया जाता है, तो उसके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।”  (Uttarakhand UCC Challenged in High Court-Reasons, Uttarakhand News, Nainital High Court News, UCC, Provisions in UCC)

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