April 30, 2024

उत्तराखंड में निर्दलीय व गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों का चुनावी इतिहास, 2 निर्दलीय जीते भी…

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-उत्तराखंड में प्रमुख राष्टीय दलों के प्रत्याशियों के बीच ही रहता है मुकाबला,
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 18 अप्रैल 2024 (independent & other never won-Cant save security)। उत्तराखंड की पहचान राजनीतिक तौर पर हमेशा से केंद्र व देश के साथ चलने की रही है। कहते हैं उत्तराखंड से जो पार्टी जीतती है, उसी पार्टी की केंद्र में सरकार बनती है। यह भी है कि उत्तराखंड बनने के बाद यहाँ हमेशा मुकाबला चुनाव लड़ रहे पहले व दूसरे स्थान पर रहने वाले प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच ही रहता है। अलबत्ता उत्तराखंड बनने से पहले 2 निर्दलीय चुनाव जीते भी थे।

(independent & other never won-Cant save security)उत्तराखंड बनने के बाद कभी भी उत्तराखंड से कोई निर्दलीय चुनाव नहीं जीता है। वहीं यह भी सच्चाई है कि उत्तराखंड के लोकसभा चुनावों में 83 फीसदी से अधिक उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं। यह भी है कि राज्य बनने के बाद हुए सभी लोक सभा चुनाव में एक भी गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के व निर्दलीय प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाये। अब अपना चुनाव चिन्ह खो चुके परंतु पूर्व में राज्य के निर्माण में भी योगदान देने वाले, राज्य के एकमात्र क्षेत्रीय पंजीकृत दल उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशी भी लोक सभा चुनाव में जमानत गंवाने को मजबूर रहे हैं।

गौरतलब है कि उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बाद देश में चार आम चुनाव हुए हैं। इनमें कुल 256 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा और इनमें से 213 यानी 83 फीसदी से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। इनमें निर्दलीयों के साथ भाजपा व कांग्रेस के इतर गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के साथ अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के प्रत्याशी भी शामिल हैं। 2004 से लेकर 2019 तक के चार चुनावों के आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहे हैं। इधर इस बार के लोकसभा चुनाव में कुल 55 प्रत्याशी मैदान में हैं।

इनमें राष्ट्रीय दलों-भाजपा, कांग्रेस व बसपा के कुल 15, गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के 22 और 18 निर्दलीय प्रत्याशी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि इस बार के चुनाव में खासकर पौड़ी व हरिद्वार सीटों पर एक-एक निर्दलीय प्रत्याशी बड़े जोश के साथ चुनाव लड़ रहे हैं और जीत के दावे भी कर रहे हैं। अब नतीजे आने के बाद स्पष्ट होगा कि उत्तराखंड में किसी गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल व निर्दलीय प्रत्याशी की जमानत न बचने व न जीतने की परंपरा बनी रहेगी या टूटेगी।

टिहरी की रानी ने निर्दलीय किया था उलटफेर (independent & other never won-Cant save security)

Kamlendumati Shah Memoir - Channel Mountainउत्तराखंड में पांच लोकसभा सीटों के इतिहास पर नजर दौड़ाएं, तो देश की आजादी के बाद पहले 1952 के चुनाव में महारानी कमलेंदुमती शाह ने निर्दलीय रूप से ताल ठोक कर कांग्रेस के प्रत्याशी को करारी शिकस्त दी थी। इसके साथ ही उन्होंने निर्दलीय रूप से टिहरी सीट पर राज परिवार के दबदबे को साबित कर दिया था।

इसके बाद इस सीट पर राष्ट्रीय दलों के टिकट से महाराजा मानवेंद्र शाह ने आठ बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की। उनके बाद महारानी माला राज्य लक्ष्मी शाह ने 3 बार इस सीट पर चुनाव जीता है। यह भी है कि टिहरी लोकसभा सीट पर 19 चुनावों में से 11 बार जनता ने राज परिवार को संसद जाने का मौका दिया। इस सीट पर इकलौती राज परिवार की महारानी ने ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की।

हेमवती नंदन बहुगुणा ने भी निर्दलीय जीता था चुनाव (independent & other never won-Cant save security)

All India Hemwati Nandan Bahuguna Smriti Samiti, 44% OFFउत्तराखंड में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दूसरा उदाहरण पौड़ी लोकसभा सीट पर दिखाई देता है। इस सीट पर देश के चुनावी इतिहास में केवल एक ही राजनेता ने पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने निर्दलीय रूप से ताल ठोककर जीत हासिल करने का करिश्मा किया था। उन्होंने 1980 में कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सीधे इंदिरा गांधी को चुनौती देकर निर्दलीय रूप से न केवल इस लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा, बल्कि कांग्रेस के प्रत्याशी को भी करारी शिकस्त दी थी।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेसी थे। इसके बावजूद उनका पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बहुत से मुद्दों पर मतभेद रहता था। यही वजह थी कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई बार दल बदला। 1980 में हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस छोड़ी। मतभेद का कारण यह था कि उन्होंने कॉंग्रेस से अपने 30 लोगों के लिए टिकट मांगा था, लेकिन इंदिरा ने मना कर दिया था।

इसके बाद 1981 में हुए उप चुनाव में वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे। इंदिरा गांधी ने उन्हें हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। उनके विरुद्ध कुल 34 चुनावी सभा की थी। 18 मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रचार में लगे थे। यह चुनाव कुल दस महीने चला। एक बार रद्द किया गया तो दो बार तिथि में परिवर्तन हुआ। इसके बाद भी स्थानीय स्तर पर लोगों ने नारा दिया ‘गढ़वा का चंदन हेमवती नंदन’। उस चुनाव में बहुगुणा भारी मतों से विजयी रहे। यह हार बहुत दिनों तक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा को चुभती रही। (independent & other never won-Cant save security)

विभिन्न चुनावों में जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों की संख्या (independent & other never won-Cant save security)

2004 के लोक सभा चुनाव में मैदान में कुल 54 प्रत्याशी थे। इनमें से 43 यानी 79 फीसदी की जमानत जब्त हो गई। वहीं राष्ट्रीय दलों के 14 में से चार, राज्य स्तरीय दलों के 15 में से 14, गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के सभी सात और सभी 18 निर्दलीय प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। (independent & other never won-Cant save security)

2009 के लोक सभा चुनाव में कुल 76 प्रत्याशी मैदान में उतरे। इनमें से 64 यानी 84 फीसदी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों में राष्ट्रीय दलों के 18 में से छह, राज्य स्तरीय दलों के सात में से सात, गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के सभी 22 और सभी 29 निर्दलीय प्रत्याशी शामिल हैं। (independent & other never won-Cant save security)

इसी तरह 2014 के लोक सभा मैदान में कुल 74 प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें से 64 यानी 86 फीसदी की जमानत जब्त हुई। इनमें राष्ट्रीय दलों के 17 में से सात, गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के सभी 30 और सभी 27 निर्दलीय प्रत्याशी शामिल हैं। (independent & other never won-Cant save security)

वहीं 2019 के लोक सभा चुनाव में कुल 52 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ज्ञ। इनमें से 42 यानी 80 प्रतिशत की जमानत जब्त हुई। जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों में राष्ट्रीय दलों के 15 में से पांच, गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों के सभी 20 और सभी 17 निर्दलीय प्रत्याशी जमानत बचाने में नाकाम रहे। (independent & other never won-Cant save security)

यह होता है जमानत जब्त होना (independent & other never won-Cant save security)

कोई भी चुनाव लड़ने के लिये प्रत्याशियों को जमानत के रूप में एक धनराशि जमा करनी होती है। जो प्रत्याशी चुनाव में पड़े कुल वैध मतों का कम से कम छठा हिस्सा यानी 16.67 फीसदी मत हासिल नहीं कर पाते हैं, उनकी जमानत राशि जब्त हो जाती है। जमानत की धनराशि किसी उम्मीदवार का नामांकन खारिज होने, या नामांकन वापस लेने तथा चुनाव जीतने की दशा में वापस होती है। प्रत्याशी की मतदान शुरू होने से पहले मृत्यु होने की स्थिति में एवं छठे हिस्से से कम वोट मिलने के बावजूद चुनाव जीत जाने पर भी जमानत की धनराशि वापस मिल जाती है। (independent & other never won-Cant save security)

उत्तराखंड में पंजीकृत हैं 24 राजनीतिक दल (independent & other never won-Cant save security)

नैनीताल। उत्तराखंड छोटा सा प्रदेश है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस छोटे से प्रदेश में कितने राजनीतिक दल पंजीकृत हैं। नैनीताल जनपद के हल्द्वानी निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता हेमंत गौनिया द्वारा सूचना के अधिकार के तहत राज्य निर्वाचन आयोग से मांगी गयी जानकारी से खुलासा हुआ है कि राज्य में 24 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं। 6 मार्च 2002 के बाद राज्य में भारतीय जनता पाटी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी व भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी ने राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण कराया है। (independent & other never won-Cant save security)

जबकि आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल, उत्तराखंड देवभूमि पार्टी, गोर्खा डेमोक्रेटिक फ्रंट, जनता दल-सेक्युलर, अखिल भारतीय राष्ट्रीय गोरखा मोर्चा पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी-उत्तराखंड, देवभूमि पार्टी, उत्तराखंड संवैधानिक संरक्षण मंच, उत्तराखंड क्रांति दल डेमोक्रेटिक, राष्ट्रीय उत्तराखंड पार्टी, खुसरो सेना पार्टी, भारतीय अन्त्योदय पार्टी, उत्तराखंड पवैतीय विकास पार्टी, भारत की लोक जिम्मेदार पार्टी, राष्ट्रीय विचारक पार्टी, राज्य स्वराज पार्टी, मानव दल, उत्तराखंड समानता पार्टी ने नागर स्थानीय निकायों के निर्वाचन के लिये राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण कराया है। यह अलग बात है कि इनमें से अनेक दलों के नाम शायद राज्य के अधिसंख्य मतदाताओं ने सुने भी नहीं होंगे। (independent & other never won-Cant save security)

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