-दो से तीन लाख रुपए प्रति किलोग्राम का उत्पाद भी उगाती हैं दिव्या
नवीन समाचार, नैनीताल, 19 जुलाई 2022। ‘खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है…’ उत्तराखंड में पलायन व बेरोजगारी की हर ओर सुनाई देने वाली रुदाली के बीच उत्तराखंड की एक लड़की यह शेर कहने का मजबूर कर देती है। खुद पहाड़ से अच्छी पढ़ाई के लिए पलायन करने वाली यह लड़की पढ़ाई कर देश के मेट्रो शहरों में रोजगार के लिए आठ नौकरियां बदलती है, लेकिन उसे मजिल मिलती है, अपनी मिट्टी में। आज वह रोजगार के लिए भटकने वाली नहीं, सैकड़ों युवक-युवतियों को रोजगार दे रही है, और उसकी कंपनी का टर्नओवर सालान दो करोड़ रुपए तक बताया जाता है। उनका एक उत्पाद दो से तीन लाख रुपए प्रति किलोग्राम के भाव का भी है।
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की ‘मशरूम गर्ल’ के नाम से प्रसिद्ध 30 वर्षीय दिव्या रावत की। उत्तराखंड के चमोली जनपद के एक गांव में जन्मी दिव्या देहरादून में स्कूली शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई करने दिल्ली गई, वहां एमिटी यूनिवर्सिटी से ‘मास्टर ऑफ सोशल वर्क’ की पढ़ाई की। फिर प्राइवेट कंपनी में 25 हजार रुपए महीने की नौकरी शुरू की। एक के बाद एक करीब 8 नौकरियां बदलीं, क्योंकि वह इनसे संतुष्ट नहीं थी। कुछ अलग करने की चाह उसे वापस अपने राज्य ले आई। 2013 में जब वो वापस उत्तराखंड लौटी तो देखा कि नौकरी की तलाश में प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों से लोग दूसरे प्रदेशों में पलायन करने को मजबूर हैं। उत्तराखंड के कई गांव खाली होकर ‘घोस्ट विलेज’ यानी भुतहा गांव के रूप में अभिशप्त हो गए थे। तभी इस लड़की ने कुछ अलग करने का फैसला लिया।
दिव्या ने 2015 में मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया। इसके लिए वह कई राज्यों और विदेश भी गईं। इसके बाद 3 लाख रुपए लगाकर मशरूम की खेती शुरू की। धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलता गया और जल्द ही दिव्या ने अपनी कंपनी भी बना ली। उन्होंने मशरूम की खेती के जरिए बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया। इसके लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर महिलाओं और युवाओं को मशरूम की खेती सिखाना शुरू किया। इस प्रकार दिव्या अब तक उत्तराखंड के 10 जिलों में मशरूम उत्पादन की 55 से ज्यादा यूनिट लगा चुकी हैं। उन्हें उत्तराखंड सरकार ने मशरूम का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया है। दिव्या की मशरूम आधारित कंपनी ‘सौम्या फूड प्राइवेट कंपनी’ आज करीब 2 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना कारोबार कर रही हैं। दिव्या ने देहरादून में राजपुर रोड पर सचिवालय के पीछे ‘मशमश’ नाम से एक रेस्टोरेंट भी शुरू किया है, जिसमें तंदूरी मशरूम, चिली मशरूम, मशरूम टिक्का, मशरूम नूडल्स जैसे मशरूम के कई लजीज पकवान परोसे जाते हैं।
एक कमरे में 5 हजार रुपए लगाकर कर सकते हैं दोगुने की कमाई
दिव्या ने बताया कि कोई भी आम इंसान 10 गुण 12 वर्ग फिट के एक कमरे से भी करीब पांच हजार रुपए लगाकर मशरूम की खेती शुरू सकता है। मशरूम की एक फसल का चक्र करीब 2 महीने का होता है। इतने में ही सभी खर्चे काट कर 4 से 5 हजार रुपए का लाभ कमाया जा सकता है। मशरूम की खेती के लिए शुरुआती प्रशिक्षण की जरूरत होती है जो कृषि एवं बागवानी विभाग से ली जा सकती हैं। इसके अलावा दिव्या के हेल्पलाइन नंबर (0135 2533181) पर कॉल करके भी जानकारी ली जा सकती है। उन्होंने बताया कि एक स्टैंडर्ड यूनिट की शुरुआत 30 हजार रुपए में हो जाती है। इसमें 15 हजार रुपए में ढांचागत व्यवस्थाओं पर और 15 हजार रुपए अन्य खर्च होते हैं। ढांचागत व्यवस्थाएं कम से कम 10 साल तक चलती है।
दो से तीन लाख रुपए प्रति किलोग्राम भाव की मशरूम भी उगाती हैं दिव्या
मशरूम की खेती को चुनने के पीछे की वजह को लेकर दिव्या बताती हैं, ‘मैंने मशरूम इसलिए चुना, क्योंकि मार्केट सर्वे के दौरान यह पाया कि मशरूम के दाम सब्जियों से बेहतर मिलते हैं। एक किलो आलू आठ से दस रुपए तक मिलता है, जबकि मशरूम की न्यूनतम कीमत 100 रुपए किलो है। इसलिए मैंने मशरूम की खेती करने का फैसला लिया। दिव्या कहती हैं, ‘मशरूम जल, जमीन, जलवायु की नहीं बल्कि तापमान की खेती है। इसकी अलग-अलग किस्मों की खेती हर मौसम में की जा सकती है। दिव्या बताती हैं, ‘दिल्ली में मैंने देखा कि बहुत सारे पहाड़ी लोग 5-10 हजार रुपए की नौकरी के लिए अपना गांव छोड़ कर पलायन कर रहे हैं। मैंने सोचा कि मुझे अपने घर वापस जाना चाहिए और मैं अपने घर उत्तराखंड वापस आ गई। मैंने सोचा कि अगर पलायन को रोकना है तो हमें इन लोगों के लिए रोजगार का इंतजाम करना होगा। इसके लिए मैंने खेती को चुना, क्योंकि खेती जिंदगी जीने का एक जरिया है।’
दिव्या की ‘सौम्या फूड प्राइवेट कंपनी’ में मशरूम प्लांट भी है, जहां साल भर मशरूम की खेती होती है। इस प्लांट में सर्दियों के मौसम में बटन, गर्मियों के मौसम में मिल्की मशरूम और बीच में ओएस्टर मशरूम की खेती होती है। इसके साथ ही दिव्या उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाली कीड़ा जड़ी की एक प्रजाति कार्डिसेफ मिलिटरीज का भी उत्पादक करती हैं, जिसकी बाजार में कीमत 2 से 3 लाख रुपए प्रति किलो तक है। कीड़ा जड़ी के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए दिव्या ने बकायदा प्रयोगशाला बनाई है। दिव्या की ख्वाहिश है कि आम आदमी के भोजन में हर तरह से मशरूम को शामिल किया जाए। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : मोदी को बाल मिठाई खिलाने के बाद लक्ष्य सेन पहुचे भवाली, स्थानीय विधायक सरिता आर्य व भाजपा कार्यकर्ताओं ने किया स्वागत
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 22 मई 2022। शनिवार सुबह अपनी टीम के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सम्मानित एवं उन्हें अल्मोड़ा की बाल मिठाई भेंट करने वाले थॉमस कप विजेता शटलर लक्ष्य सेन रविवार को अपने घर अल्मोड़ा जाते हुए नैनीताल जनपद के भवाली में कुछ देर रुके। यहां स्थानीय विधायक सरिता आर्य व भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका फूल मालाओं से स्वागत किया। यह भी देखें :
लक्ष्य ने बताया कि आज की नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से उन्होंने पूरी टीम के साथ मुलाकात की और जहा उन्हें सम्मानित किया गया। उन्होंने पीएम मोदी को उनके आग्रह पर अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई भेंट की। उल्लेखनीय है कि लक्ष्य 2018 के यूथ ओलंपिक में रजत पदक तथा एशियन जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण और रजत पदक भी जीते हैं। उन्होंने इंडिया ओपन की ट्रॉफी भी अपने नाम की है।
साथ ही वह ऑल इंग्लैंड का फाइनल खेलने वाले चौथे भारतीय पुरुष खिलाड़ी भी बन गए हैं। वर्तमान में उनकी 9वी विश्व रैंक है। इस मौके पर उनके पिता डीके सेन, भाई चिराग सेन, माता निर्मला सेन, लवेंद्र क्वीरा, रवींद्र क्वीरा, गुड्डू क्वीरा, मनोज जोशी, शिवांशु जोशी, प्रकाश आर्य, आशु चंदोला, कंचन साह, हरिशंकर कांडपाल, पंकज बिष्ट, भावना मेहरा, नीमा क्वीरा व मीना बिष्ट आदि मौजूद रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, नई दिल्ली, 22 मई 2022। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर थॉमस कप की विजेता पुरुष टीम एवं उबेर कप में हिस्सा लेने वाली महिला टीम के चैंपियन बैडमिंटन खिलाड़ियों से अपने आवास पर मुलाकात की और उनके खेल प्रदर्शन की जमकर तारीफ की। इस दौरान उत्तराखंड के युवा सनसनी लक्ष्य सेन ने जब पीएम मोदी से मुलाकात की। इस दौरान उत्तराखंड के अल्मोड़ा के रहने वाले लक्ष्य सेन ने प्रधानमंत्री के पैर छूकर उन्हें अल्मोड़े की प्रसिद्ध बाल मिठाई का डब्बा भेंट किया।
उल्लेखनीय है कि जब भारतीय टीम ने थॉमस कप ट्रॉफी अपने नाम करते हुए इतिहास रचा था तब प्रधानमंत्री मोदी ने फोन पर हर खिलाड़ी से बात की थी और लक्ष्य सेन से बात कर कहा था, अब तो बाल मिठाई खिलानी पड़ेगी। पीएम मोदी ने बताया कि उन्होंने लक्ष्य सेन से टेलीफोन पर बात करते हुए कहा था कि मैं आपसे अल्मोड़ा की बाल मिठाई खाऊंगा और आज वो लेकर आया है। उसने याद रखा। इस दौरान लक्ष्य ने कहा, ‘आपसे आज दूसरी बात मुलाकात हो रही है। जब भी आप मिलते हैं तो काफी मोटिवेटेड फील करता हूं।’ अल्मोड़े की प्रसिद्ध खीम सिंह मोहन सिंह की बाल मिठाई का डब्बा देते हुए लक्ष्य ने कहा कि मैं आपके लिए बाल मिठाई लेकर आया हूं। इस पर पीएम मोदी हंसने लगे।
उन्होंने लक्ष्य से प्रतियोगिता के दौरान उन्हें फूड प्वॉइजनिंग होने के बारे में भी जानकारी ली, और पूछा कि कैसे उन्होंने इसके बावजूद अपने आपको खेल में फोकस रखा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आपको देखकर छोटे छोटे बच्चों का भी मन होता है स्पोट्र्स में जाने का । आठ से 10 साल के बच्चों को क्या संदेश दोगे? लक्ष्य सेन ने कहा जो भी काम करो दिल से करो। अपना पूरा ध्यान उस पर ही फोकस करो। प्रधानमंत्री मोदी ने लक्ष्य से कहा नटखटपन छोड़ो नहीं जिओ। यह जिंदगी की ताकत भी है, उसे जिओ। उस ताकत को पहचानो जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी कुछ करने का हौसला दिया।
इस दौरान पीएम मोदी ने टीम के सदस्यों को बधाई दी और कहा, ‘इतनी बड़ी टीम ने इतना बड़ी उपलब्धि हासिल की, इसी तरह से खेलते रहिए। मेरी तरफ से आपको बहुत शुभकामनाएं हैं आगे बहुत कुछ करना है।’ इस दौरान पीएम मोदी ने हर खिलाड़ी से व्यक्तिगत मुलाकात की और हर एक खिलाड़ी का अनुभव जाना। उल्लेखनीय है कि भारत की पुरुष बैडमिंटन टीम ने 15 मई को इतिहास रचते हुए फाइनल में 14 बार के चैंपियन इंडोनेशिया को एकतरफा मुकाबले में 3-0 से हराकर थॉमस कप के 73 वर्ष के इतिहास में पहली बार यह खिताब जीता।
16 अगस्त 2001 को अल्मोड़ा में जन्मे शटलर लक्ष्य का परिवार मूल रूप से सोमेश्वर के ग्राम रस्यारा का रहने वाले हैं। यह भी बताया जाता है कि सेन जाति के लोगों का मूल चीन से हैं। अलबत्ता करीब आठ दशकों से उनका परिवार अल्मोड़ा के तिलकपुर मोहल्ले में रहता है। उनके दादा सीएल सेन जिला परिषद में काम करते थे। सीएल सेन ने सिविल सर्विसेस में राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हुए कई पुरस्कार जीते। लक्ष्य को 6 वर्ष की उम्र में सीएल सेन से ही सबसे पहले बैडमिंटन थमाया था, जिसमें आगे चलकर मात्र 10वर्ष की आयु में उन्होंने इजराइल में पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक प्राप्त किया था। लक्ष्य के पिता डीके सेन साई यानी स्पोर्ट्स अथारिटी ऑफ इंडिया में कोच रहे चुके हैं और लक्ष्य के कोच भी वही हैं। लक्ष्य के बड़े भाई चिराग सेन भी अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिनसे प्रेरित हुए।
चिराग व लक्ष्य की माता निर्मला सेन अल्मोड़ा के निजी स्कूल में शिक्षिका थी। 2018 में पिता डीके सेन ने वीआरएस ले लिया और माता ने भी स्कूल छोड़ बच्चों के प्रशिक्षण के लिए नौकरी छोड़ दी, और सेन परिवार बच्चों को बेहतर प्रशिक्षण के लिए बेंगलुरु शिफ्ट हो गया। वर्तमान में डीके सेन प्रकाश पादुकोण अकादमी बेंगलुरु में सीनियर कोच हैं तथा लक्ष्य और चिराग भी वहीं प्रशिक्षण हासिल करते हैं। अलबत्ता उनका अल्मोड़ा आना-जाना बना रहता है। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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-25 वर्ष की आयु में यूपी के सबसे कम उम्र के विधायक बने बाद में स्वास्थ्य मंत्री रहे नैनीताल के प्रताप भैया
-इस सभा में बाद में नेपाल के विदेश सचिव रहे उद्धव देव भट्ट भी एक युवा के रूप में थे मौजूद
-दर्जनों स्कूल खोल शिक्षा की अलख भी जलायी, जाति प्रथा के रहे विरोधी

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 5 फरवरी 2022। आज के दौर में जबकि राजनेता अपना जन-धन व बाहु बल दिखाकर ही स्वयं को बड़ा नेता दिखाने की कोशिश करते हैं, वहीं 25 वर्ष की आयु में यूपी के सबसे कम उम्र के विधायक बनने का रिकार्ड बनाने वाले नैनीताल निवासी यूपी के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री स्वर्गीय प्रताप भैय्या जैसे नेता भी रहे, जिनके कई किस्से आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। उन्होंने खुद को दिखाने के लिये भीड़ जुटाने के बजाय खुद से पहल करते हुए क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने के साथ ही जाति प्रथा के विरुद्ध भी ऐसे अनूठे कार्य किये, कि लोग खुद-ब-खुद उनके साथ होते चले गये।
प्रताप भैया की यह भी खासियत रही कि वह मंत्री रहते भी कभी नगर में मॉल रोड पर अपने वाहन व गनर के साथ नहीं निकले। उनके विद्यालय में सभी छात्र-छात्राओं को सैनिक कहा जाता था। जब भी नगर में कोई वीआईपी आता था वह अपने सैनिकों के साथ स्वयं भी सैनिक की वर्दी में उसका स्वागत करने पहुंचते थे। हर राष्ट्रीय पर्व पर वह और उनके सैनिक सबसे आगे रहते थे।

युवा प्रताप का उनके पहले 1956 के विधानसभा चुनाव का किस्सा आज के राजनेताओं के लिये अनुकरणीय हो सकता है। इस चुनाव में प्रताप लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करके प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर घर से दूर, अनजान सी तत्कालीन संयुक्त नैनीताल जनपद की खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। खटीमा में न उनकी पार्टी का ढांचा था, और ना बहुत समर्थक ही। इसकी परवाह किये बिना अपनी सभा से पूर्व उन्होंने दिन में खुद ही सभा स्थल पर दरी बिछायी और खुद ही घंटी बजाकर लोगों को अपनी सभा की जानकारी दी। ऐसे में शाम को जब वे सभा को संबोधित करने लगे तो हर कोई उनका मुरीद हो गया था कि सुबह यही लड़का सभास्थल पर दरी बिछा रहा था।
इस चुनाव में एक और खास बात यह भी रही कि उनकी इस सभा की अध्यक्षता उस समय एक अनजान नेपाली युवक उद्धव देव भट्ट ने की थी, जोकि बाद में नेपाल के विदेश सचिव रहे। उनके जीवन के कई और भी दिलचस्प उदाहरण मिलते हैं। अपने जीवन के आखिरी दिनों तक वे विधि विचार गोष्ठी व हाथ-हल किसान गोष्ठी सहित कई गोष्ठियां व अन्य कार्यक्रम करते थे, और इनमें कितने कम लोगों की उपस्थिति होती, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था, और वे गोष्ठी शुरू करने के लिये किसी का इंतजार भी नहीं करते थे।
एक बार तो उनकी गोष्ठी में उनके पुत्र, कुछ अन्य परिजन तथा जूनियर अधिवक्ता मिलाकर कुल पांच लोग ही गोष्ठी शुरू होने के समय तक पहुंचे थे। बावजूद उन्होंने यह कहकर गोष्ठी शुरू कर दी कि ये ही उनके ‘पंच परमेश्वर’ हैं। उन्होंने नैनीताल के प्रतिष्ठित शहीद सैनिक विद्यालय सहित एक सौ से अधिक स्कूलों की स्थापना कर उन्होंने समाज में शिक्षा की ज्योति जलाई। उन्होंने स्वयं और पुत्र ज्योति प्रकाश के नाम के पीछे जाति न लिखकर अपने स्कूलों में छात्रों की जाति न लिखने का नया प्राविधान भी बनाया, जो आज भी लागू है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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-अब प्रशासन शिकायतकर्ता को उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिलेख दिखाकर एक-दो दिन में लेगा निर्णय
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 25 जनवरी 2022। नैनीताल विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी सरिता आर्य की ओर से मंगलवार को उनके जाति प्रमाण पत्र पर जतायी गई आपत्ति पर कई अभिलेखों के साथ अपना जवाब दे दिया है। अब प्रशासन उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए अभिलेखों को आपत्तिकर्ता को उपलब्ध कराने और इसके बाद अगले एक या दो दिन में कोई निर्णय लेने की बात कर रहा है। रिटर्निंग ऑफीसर प्रतीक जैन की ओर से तहसीलदार नवाजीश खलिक ने यह जानकारी दी है।
विदित हो कि हल्द्वानी निवासी हरीश चंद्र पुत्र गणेश राम आर्या निवासी बागजाला गौलापार ने उनके जाति प्रमाण पत्र को चुनौती देते हुए जनपद के डीएम तथा नैनीताल के एसडीएम व तहसीलदार को शिकायती पत्र भेजा है। शिकायतकर्ता के अनुसार सरिता आर्य के 5 अगस्त 2008 को जारी जाति प्रमाण पत्र संख्या 3711-एमजे-2008 में सरिता आर्य के पति एनके आर्या व माँ का नाम जीवंती देवी निवासी भूमियाधार लिखा गया है, जबकि कानूनन जाति प्रमाण पत्र में पिता का नाम कुलदीप सिंह लिखा जाना चाहिए था।
उनके पिता अनुसूचित जाति में नहीं आते हैं, और पिता का नाम न लिखा जाना नियमों का उल्लंघन है। लिहाजा उनका जाति प्रमाण पत्र गलत जारी किया गया है, इसलिए उनके जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किया जाना चाहिए। शिकायती पत्र में यह भी कहा गया है कि 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी हेम आर्य ने भी इस विषय पर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह सही फोरम पर जाति प्रमाण पत्र को चुनौती दें।
इधर, सरिता आर्य का इस विषय में कहना है कि वह अपने इसी जाति प्रमाण पत्र से नैनीताल की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नैनीताल नगर पालिका की अध्यक्ष एवं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित नैनीताल विधानसभा से वर्ष 2007 में विधायक रह चुकी हैं, तथा दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिता ने दो शादियां की थी। बचपन से वह अनुसूचित जाति की मां के साथ ही रही। मां ने ही उनका पालन पोषण किया। उन्होंने कभी पिता के नाम के अलावा अन्य कहीं भी उनका लाभ नहीं लिया।
2012 में मामला उच्च न्यायालय पहुंचने पर न्यायालय ने भी मां द्वारा उनका भरण पोषण करने के कारण उनकी जाति को अनुसूचित जाति माना। यह भी कहा कि मामला उच्च न्यायालय पहंुचने पर उत्तराखंड सरकार भी स्वयं इस मामले में पक्षकार थी। यह भी कहा कि भाजपा का संगठन पूरी ताकत से उनकी जीत के लिए संकल्पबद्ध होकर जुटा है, इसलिए विरोधी पुराने मामले को हवा दे रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा से जुड़े लोग उनके जाति प्रमाण पत्र पर आपत्ति को उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना भी बता रहे हैं। सरिता ने भी कहा कि वह इस मामले में न्यायालय की शरण लेने के साथ ही संबंधित व्यक्ति पर मानहानि का दावा भी करेंगी।
उधर, उनके जाति प्रमाण पत्र का मुद्दा एक बार पुनः उठने पर भाजपा के अन्य प्रत्याशी पर गहरी निगाह रखे हुए हैं। इस पर खुलकर तो अभी कोई कुछ नहीं बोल रहा, अलबत्ता सोशल मीडिया पर उनके द्वारा की जा रही टिप्पणियों से ऐसा लग रहा है कि एक बार पुनः उन्हें सरिता आर्य का नामांकन निरस्त होने और उनका टिकट बदलकर उन्हें मिलने की उम्मीद बन गई है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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-नैनीताल की पहली महिला पालिकाध्यक्ष रहने के बाद 23 वर्ष बाद कांग्रेस के लिए जीती नैनीताल विधानसभा व बनी पहली महिला विधायक

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 17 जनवरी 2022। नैनीताल की पूर्व एवं पहली महिला विधायक व पहली महिला नगर पालिका अध्यक्ष तथा पिछले 7 वर्षों से महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रहीं सरिता आर्या ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है। भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते हुए उन्होंने एक तरह से कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव एवं सोनिया गांधी के बाद दूसरे नंबर की सबसे ताकतवर महिला नेत्री प्रियंका गांधी के यूपी में चुनाव के सबसे बड़े नारे ‘लड़की हूं-लड़ सकती हूं’ पर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने कहा है, कांग्रेस पार्टी यूपी में महिलाओं को इस नारे के तहत 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने की बात कह रही है, किंतु उत्तराखंड में 20 फीसद महिलाओं को भी टिकट देने को भी तैयार नहीं है। दिवंगत डॉ. इंदिरा हृदयेश के देहावसान के बाद राज्य में कांग्रेस पार्टी का सबसे बड़ा महिला चेहरा एवं महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद उनका टिकट कट रहा है, ऐसे में वह कांग्रेस को राजनीतिक तौर पर महिला विरोधी साबित करने के लिए बड़ा हथियार हो सकती हैं।
इधर भले वह बिना शर्त भाजपा में जाने की बात कर रही हों, परंतु दो दिन पूर्व वह कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में टिकट मिलने पर भाजपा में जाने की साफ-साफ बात कह चुकी हैं, ऐसे में उन्हें टिकट मिलने की संभावना को समझा जा सकता है। साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि उनके भाजपा में शामिल होना का भाजपा न केवल नैनीताल विधानसभा, वरन पूरे राज्य में वरन उत्तराखंड के चुनाव के बाद पार्टी उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्यों में भी भी कांग्रेस के विरुद्ध महिला विरोधी होने के प्रचार के लिए प्रयोग कर सकती है।
मुख्यालय के निकटवर्ती गांव में अपनी माता के हाथों में पली एक बालिका का नैनीताल जैसी देश की दूसरी बनी नगर पालिका की पहली महिला अध्यक्ष व पहली महिला विधायक बनने के बाद महिला कांग्रेस के शीर्ष पद पहुंचने का सफर किसी परी कथा की तरह रहा है, और इस कथा में सबसे बड़ी भूमिका सरिता आर्या के मृदुभाषी होने तथा पदों की प्राप्ति के बावजूद स्वयं के व्यवहार में कोई परिवर्तन खासकर किसी तरह का दंभ रखे बिना छोटों-बढ़ों सबको सम्मान देने की रही है। किसी भी व्यक्ति से हाथ जोड़कर कुशल क्षेम पूछना और कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि होने के बावजूद पीछे की पंक्ति में बैठे परिचितों का अभिनंदन करना उनकी पहचान है।
सरिता के राजनीतिक सफर की बात करें तो अपनी मां के साथ निकटवर्ती गांव भूमियाधार में रहने वाली एक ग्रामीण बालिका किसी परी कथा की तरह एक आईएएस अधिकारी की पत्नी बनीं, और इसके बाद दो बेटों की मां व एक गृहणी के रूप में घर-गृहस्थी संभाल रही सरिता का सार्वजनिक जीवन में पदार्पण वर्ष 1990 में ऑल इंडिया वीमन कांफ्रेंस में जुड़ने के साथ हुआ। वर्ष 2003 में वह सीधे व पहले प्रयास में ही नैनीताल नगर पालिका अध्यक्ष की बड़ी भूमिका के लिए निर्वाचित हुईं और 2008 तक इस पद पर उनका बेदाग कार्यकाल रहा। आगे 2009 में ऑल इंडिया वीमन कांफ्रेंस ने उन्हें नगर अध्यक्ष की जिम्मेदारी सोंपी, जिसके जरिए अन्य दलों की महिला नेत्रियों के साथ भी उनके मधुर संबंध रहे।
वर्ष 2012 में उन्होंने मतदान से मात्र एक पखवाड़े पहले टिकट मिलने पर उक्रांद व भाजपा के हाथों रही नैनीताल सीट पर कांग्रेस को रिकार्ड 23 वर्षों के बाद सत्ता में वापस ला दिया। इधर राज्य की राजनीति में बदलते समीकरणों, जनपद के अन्य अनुसूचित जाति के नेता यशपाल आर्य के जनपद से बाहर से लड़ने से खाली हुई अनुसूचित नेता की जगह को बखूबी भरते हुए सरिता पहले मंत्री स्तरीय संसदीय सभा सचिव का पद प्राप्त करने के बाद महिला कांग्रेस के शीर्ष पर पहुंची। इधर खुद के साथ महिला कांग्रेस की नेत्रियों को राज्य में 20 फीसद सीटों पर टिकट दिलाने के लिए संघर्ष करते हुए व संजीव आर्य व यशपाल आर्य के भाजपा छोड़ कांग्रेस में आने के बाद बदली परिस्थितियों में उन्होंने कांग्रेस से करीब 18 वर्ष पुराना रिश्ता तोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया है।
नैनीताल में दलों के साथ चुनाव के समीकरण गड़बड़ाए
नैनीताल। आसन्न विधानसभा चुनाव से पूर्व नैनीताल में राजनीतिक दलों व चुनाव के समीकरण बुरी तरह से उलझ व गड़बड़ा गए हैं। आम आदमी पार्टी ने यहां डॉ. भुवन आर्य को टिकट दिया है, जो उत्तराखंड क्रांति दल से अपनी राजनीतिक शुरुआत करने के बाद आम आदमी पार्टी में आए हैं। कांग्रेस से गत दिनों हेम आर्य ने भाजपा में और निवर्तमान विधायक संजीव आर्य ने भाजपा से कांग्रेस में ‘घर वापसी’ की है तो भाजपा के संभावित प्रत्याशियों में आगे बताए जा रहे मोहन पाल बसपा से भीमताल सीट से चुनाव लड़ चुके हैं।
अब कांग्रेस नेत्री सरिता आर्य भाजपाई हो गई हैं। इन नेताओं के साथ उनके समर्थकों में भी खासा असमंजस है। अब तक ठेठ कांग्रेसी रहे लोग भाजपा की और भाजपा के कुछ लोग कांग्रेस के गुणगान कर रहे हैं। नई-नई आम आदमी पार्टी में भी प्रत्याशी को लेकर भारी असंतोष नजर आ रहा है। ऐसे में आने वाले चुनाव में यहां राजनीतिक तौर पर कोई भी भविष्यवाणी करना कठिन होता जा रहा है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : त्रिवेंद्र ने किया आज कुछ ऐसा कि हर नेता के लिए अनुकरणीय…
नवीन समाचार, देहरादून, 19 जनवरी 2022। एक ओर डोईवाला सीट से चुनाव लड़ने के लिए डॉ. हरक सिंह रावत की ऐसी दुर्गति हुई है कि हमेशा सत्ता के करीब रहने वाले हरक चार दिन से सत्ता दूर, लाख मांफी मांगने के बावजूद किसी दल में जाने को भी तरस रहे हैं। वहीं इसी सीट के मौजूदा विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई है। त्रिवेंद्र ने पत्र में जो लिखा है, उस पर गौर किया जाए तो त्रिवेंद्र का जो चरित्र उभर रहा है, वह किसी भी राजनेता के लिए अनुकरणीय हो सकता है।
पत्र में त्रिवेंद्र ने लिखा है, ‘माननीय अध्यक्ष जी, विनम्रभाव से आपसे अनुरोध करना चाहता हूं कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है व युवा नेतृत्व पुष्कर धामी के रूप में मिला है, बदली राजनीतिक परिस्थितियों में मुझे विधानसभा चुनाव 2022 नहीं लड़ना चाहिए। मैं अपने भावनाओं से पूर्व में ही अवगत करवा चुका हूं। मान्यवार पार्टी ने मुझे देवभूमि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने का अवसर दिया, यह मेरा परम सौभाग्य था। मैंने भी कोशिश की कि पवित्रता के साथ राज्य वासियों की एकभाव से सेवा करुं व पार्टी के संतुलित विकास की अवधारणा को पुष्ट करूं।
प्रधानमंत्री जी का भरपूर सहयोग व आशीर्वाद मुझे व प्रदेशवासियों को मिला जो अभूतपूर्व था। मैं उनका हृदय की गहराइयों से धन्यवाद करना चाहता हूं। उत्तराखंड वासियों का व विशेषकर डोईवाला विधानसभा वासियों का ऋण तो कभी चुकाया ही नहीं जा सकता, उनका भी धन्यवाद कृतज्ञ भाव से करता हूं। डोईवाल विधानसभा वासियों का आशीर्वाद आगे भी पार्टी को मिलता रहेगा। ऐसा मेरा विश्वास है।’
साफ है कि त्रिवेंद्र ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का त्याग कर राज्य एवं पार्टी के भविष्य के लिए युवा नेतृत्व की अगुवाई में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान देने का इरादा जताया है। ‘मैं और मेरा परिवार’ की आज के दौर की राजनीति में ऐसा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर त्रिवेंद्र ने अपने तमाम आलोचनाओ से भरे-घिरे कार्यकाल के दागों को भी एक हद तक धोने का प्रयास किया है। इस और अपनी कोशिश में वह कितने सफल होते हैं, यह तो समय बताएगा। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।